Mirza Ghalib Shayari: मिर्जा गालिब उर्दू, फारसी और हिंदी के सबसे प्रसिद्ध शायर हैं। वह मुगल काल के एक प्रसिद्ध कवि और बुद्धिजीवी थे। उनकी कविताओं को उनकी सुंदरता, सादगी और समझने में आसान भाषा के लिए जाना जाता है।
ग़ालिब की शायरी का एक उदाहरण निम्नलिखित है:
Mirza Ghalib Shayari

रगों में दौड़ते हैं, फिरने के हम नहीं क़ायल
जब आँख ही से न टपका, तो फिर लहू क्या है।

वो आए घर में हमारे, खुदा की क़ुदरत हैं,
कभी हम उमको, कभी अपने घर को देखते हैं।

मेरी मोहब्बत तेरा फलसफा,
तेरी कहानी मेरी ज़ुबानी,
अब किस-किस को हम ना कहते,
यक़िन मानो अब ये हाँ में भी ना है।

बिजली इक कौंध गयी आँखों के आगे तो क्या,
बात करते कि मैं लब तश्न-ए-तक़रीर भी था।

इश्क़ ने ग़ालिब को निकम्मा कर दिया,
वर्ना हम भी आदमी थे काम के।

उन के देखने से जो आ जाती है चेहरे पर रौनक़,
वो समझते हैं कि बीमार का हाल अच्छा है।

मेरी ज़िन्दगी है अज़ीज़ तर इसी वस्ती मेरे,
हम सफर मुझे क़तरा क़तरा पीला ज़हर,
जो करे असर बड़ी देर तक।

मंज़िल मिलेगी भटक कर ही सही
गुमराह तो वो हैं जो घर से निकले ही नहीं।
जी ढूंढता है फिर वही फुर्सत की रात-दिन,
बैठे रहें तसव्वुर-इ-जानन किये हुए।

किसी फ़कीर की झोली मैं कुछ सिक्के
डाले तो ये अहसास हुआ महंगाई के इस
दौर मैं दुआएं आज भी सस्ती हैं।
Heart Touching Mirza Ghalib Shayari In Hindi

जब लगा था तीर तब इतना दर्द न हुआ ग़ालिब,
ज़ख्म का एहसास तो तब हुआ
जब कमान देखी अपनों के ही हाथ में।

यही है आज़माना तो सताना किसको कहते हैं,
अदू के हो लिए जब तुम, तो मेरा इम्तहां क्यों हो।

तुम न आए तो क्या सहर न हुई
हाँ मगर चैन से बसर न हुई,
मेरा नाला सुना ज़माने ने,
एक तुम हो जिसे ख़बर न हुई।

खैरात में मिली ख़ुशी,
मुझे अच्छी नहीं लगती ग़ालिब,
मैं अपने दुखों में रहता हु नवाबों की तरह।

दिल की तन्हाई को आग़ाज़ बना लेते हैं,
दर्द जब हद से गुज़र जाए, तो गा लेते हैं।
इश्क़ ने ग़ालिब निकम्मा कर दिया।
वर्ना हम भी आदमी थे काम के।
तुम अपने शिकवे की बातें, न खोद खोद के पूछो,
हज़र करो मिरे दिल से कि उस में आग दबी है।
Motivational Mirza Ghalib Shayari In Hindi
तूने कसम मय-कशी की खाई है ‘ग़ालिब’
तेरी कसम का कुछ एतिबार नही है।
तो फिर न इंतिज़ार में नींद आए उम्र भर,
आने का अहद कर गए आए जो ख़्वाब में।
अर्ज़–ए–नियाज़–ए–इश्क़ के क़ाबिल नहीं रहा
जिस दिल पे नाज़ था मुझे वो दिल नहीं रहा।
कोई मेरे दिल से पूछे तिरे तीर–ए–नीम–कश को
ये ख़लिश कहाँ से होती जो जिगर के पार होता
मोहब्बत में नही फर्क जीने और मरने का
उसी को देखकर जीते है जिस ‘काफ़िर’ पे दम निकले।
आया है मुझे बेकशी इश्क़ पे रोना ग़ालिब
किस का घर जलाएगा सैलाब भला मेरे बाद।
फिर तेरे कूचे को जाता है ख्याल,
दिल-ऐ-ग़म गुस्ताख़ मगर याद आया
कोई वीरानी सी वीरानी है,
दश्त को देख के घर याद आया
तोड़ा कुछ इस अदा से तालुक़ उस ने ग़ालिब,
के सारी उम्र अपना क़सूर ढूँढ़ते रहे।
क़ासिद के आते-आते खत एक और लिख रखूँ
मैं जानता हूँ जो वो लिखेंगे जवाब में।
Love Mirza Ghalib Shayari In Hindi
खुदा के वास्ते पर्दा न रुख्सार से उठा ज़ालिम,
कहीं ऐसा न हो जहाँ भी जाए, वही काफिर सनम निकले।
लाज़िम था के देखे मेरा रास्ता कोई और दिन
तनहा गए क्यों, अब रहो तनहा कोई और दिन।
थी खबर गर्म के ग़ालिब के उड़ेंगे पुर्ज़े,
देखने हम भी गए थे पर तमाशा न हुआ।
ग़ालिब हमें न छेड़ की फिर जोश-ऐ-अश्क से
बैठे हैं हम तहय्या-ऐ-तूफ़ान किये हुए।
जब लगा था तीर तब इतना दर्द न हुआ ग़ालिब
ज़ख्म का एहसास तब हुआ,
जब कमान देखी अपनों के हाथ में।
चंद तस्वीर-ऐ-बुताँ, चंद हसीनों के खतूत,
बाद मरने के मेरे घर से यह सामान निकला।
दिल से तेरी निगाह जिगर तक उतर गई,
दोनों को एक अदा में रजामंद कर गई,
मारा ज़माने ने ‘ग़ालिब’ तुम को,
वो वलवले कहाँ, वो जवानी किधर गई।
भीगी हुई सी रात में जब याद जल उठी,
बादल सा इक निचोड़ के सिरहाने रख लिया।
Mirza Ghalib Sad Shayari
इश्क़ पर जोर नहीं है, ये वो आतिश हैं ‘ग़ालिब’,
कि लगाये न लगे और बुझाये न बुझे।
एक एक क़तरे का मुझे देना पड़ा हिसाब,
ख़ून-ए-जिगर वदीअत-ए-मिज़्गान-ए-यार था।
कितना ख़ौफ होता है शाम के अंधेरों में,
पूछ उन परिंदों से जिनके घर नहीं होते।
वो बचपन के सफर आज भी याद आते है,
सुबह कही जाना होता था,
और हम पूरी रात जागते थे।
लगता था की उनसे बिछड़ेंगे तो मर जायेंगे,
कमाल का वहम था यार, बुखार तक नहीं आया।
मैंने ताले से सीखा है, साथ निभाने का हुनर,
वो टूट गया लेकिन कभी चाभी नहीं बदली।
हमें तो रिश्ते निभाने है,
वरना वक़्त का बहाना बनाकर,
नज़र अंदाज करना हमें भी आता है।
फिर उसी बेवफा पे मरते हैं,
फिर वही ज़िन्दगी हमारी है,
बेखुदी बेसबब नहीं ‘ग़ालिब’
कुछ तो है जिस की पर्दादारी है।
दुनिया खरीद लेगी हर मोड़ पर तुझे,
तूने जमीर बेचकर अच्छा नहीं किया।
कभी फुर्सत हो तो इतना जरूर बताना,
वो कौन सी मोहब्बत थी,
जो हम तुम्हे ना दे सके।
क़ासिद के आते आते ख़त इक और लिख रखूँ,
मैं जानता हूँ जो वो लिखेंगे जवाब में।
जिस ज़ख़्म की हो सकती हो तदबीर रफ़ू की,
लिख दीजियो या रब उसे क़िस्मत में अदू की।
आह को चाहिए इक उम्र असर होते तक,
कौन जीता है तिरी ज़ुल्फ़ के सर होते तक
कुछ लम्हे हमने ख़र्च किए थे मिले नही,
सारा हिसाब जोड़ के सिरहाने रख लिया !!
उन के देखे से जो आ जाती है मुँह पर रौनक़
वो समझते है की बीमार का हाल अच्छा है।
तुम न आओगे तो मरने की हैं सौ तदबीरें,
मौत कुछ तुम तो नहीं है कि बुला भी न सकूं।
तुम्हें नहीं है सर-ऐ-रिश्ता-ऐ-वफ़ा का ख्याल,
हमारे हाथ में कुछ है, मगर है क्या कहिये,
कहा है किस ने की “ग़ालिब ” बुरा नहीं लेकिन,
सिवाय इसके की आशुफ़्तासार है क्या कहिये।
दिल से तेरी निगाह जिगर तक उतर गई,
दोनों को एक अदा में रजामंद कर गई,
मारा ज़माने ने ग़ालिब तुम को,
वो वलवले कहाँ, वो जवानी किधर गई।
दर्द जब दिल में हो तो दवा कीजिए,
दिल ही जब दर्द हो तो क्या कीजिए।
उनके देखे से जो आ जाती है मुँह पर रौनक़,
वो समझते है कि बीमार का हाल अच्छा है।
हम भी दुश्मन तो नहीं है अपने
ग़ैर को तुझसे मोहब्बत ही सही।
आह को चाहिए इक उम्र असर होते तक,
कौन जीता है तेरी ज़ुल्फ़ के सर होते तक।
फिर तेरे कूचे को जाता है ख्याल,
दिल -ऐ -ग़म गुस्ताख़ मगर याद आया,
कोई वीरानी सी वीरानी है ,
दश्त को देख के घर याद आया।
उन के देखे से जो आ जाती है मुँह पर रौनक़,
वो समझते हैं कि बीमार का हाल अच्छा है।
फिर मुझे दीदा-ए-तर याद आया,
दिल जिगर तश्ना ए फरियाद आया,
दम लिया था ना कयामत ने हनोज़,
फिर तेरा वक्ते सफ़र याद आया।
ज़िन्दगी से हम अपनी कुछ उधार नही लेते,
कफ़न भी लेते है तो अपनी ज़िन्दगी देकर।
हम तो जाने कब से हैं आवारा-ए-ज़ुल्मत मगर,
तुम ठहर जाओ तो पल भर में गुज़र जाएगी रात
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