150+ Allama Iqbal Shayari | अल्लामा इक़बाल की शायरी

Allama Iqbal Shayari: आज के इस लेख में आपके लिए अल्लामा इक़बाल की शायरी लेके आए है। इस तरह की अल्लामा इक़बाल की शायरी आपको मिलना मुश्किल है। आप यह लेख अपने मित्रो के साथ साझा कर सकते हैं।

Allama Iqbal Shayari

allama iqbal shayari

चिंगारी आजादी की ‘सुलगती’ मेरे जश्न में है,
इंकलाब की ज्वालाएं लिपटी मेरे बदन में है,
मौत जहां जन्नत हो यह बात मेरे वतन में है,
कुर्बानी का जज्बा ”जिंदा” मेरे कफन में है।

ढूंढता रहता हूँ ऐ ‘इक़बाल’ अपने आप को,
आप ही गोया मुसाफिर, आप ही मंज़िल हूँ मैं।

सारे जहाँ से अच्छा, हिन्दोस्ताँ हमारा,
हम बुलबुलें हैं इसकी, यह गुलिस्ताँ हमारा।

क्या हुआ जो तेरे माथे पे है शब्दों के निशान,
कोई ऐसा सजदा भी कर जो जमीं पर यह निसान छोड़ जाए।

तिरे इश्क़ की ”इंतिहा” चाहता हूँ,
मिरी ”सादगी” देख क्या चाहता हूँ,
ये जन्नत “मुबारक” रहे ज़ाहिदों को,
कि मैं आप का सामना चाहता हूँ।

तेरी दुआ से कज़ा तो बदल नहीं सकती,
मगर है इस से यह मुमकिन की तू बदल जाये,
तेरी दुआ है की हो तेरी आरज़ू पूरी,
मेरी दुआ है तेरी आरज़ू बदल जाये।

माना कि तेरी दीद के क़ाबिल नहीं हूँ मैं,
तू मेरा शौक़ देख मेरा इंतज़ार देख।

Allama Iqbal Ki Shayari

अल्लामा “इक़बाल” रह० ने ‘फरमाया’ था,
की मोहम्मद से वफ़ा तू ने तो हम तेरे हैं,
ये जहाँ चीज़ है क्या “लौह-ओ-क़लम” तेरे हैं।

जफ़ा जो इश्क़ में होती है वो जफ़ा ही नहीं,
सितम न हो तो मोहब्बत में कुछ मज़ा ही नहीं।

अल्लामा इक़बाल ने ज़र्ब-ए-कलीम में तौहीद का एक मिस्रा यह है,
कौम क्या चीज है क़ौमों की इमामत क्या है,
इसको क्या समझें ये बेचारे दो रकअत के इमाम।

अपने किरदार पे डाल के पर्दा इकबाल,
हर शख्स कह रहा है जमाना खराब है।

इश्क़ क़ातिल से भी मक़तूल से हमदर्दी भी,
यह बता किस से मुहब्बत की जज़ा मांगेगा,
सजदा ख़ालिक़ को भी इबलीस से याराना भी,
हसर में किस से अक़ीदत का सिला मांगेगा।

नशा पिला कर गिराना तो सब को आता है,
मज़ा तो जब है के गिरतों को थाम ले साक़ी।

बड़े इसरार पोशीदा हैं इस तन्हाई ”पसंदी” में,
ये न समझो कि ”दीवाने” जहनदीदा नहीं होते,
ताजुब क्या अगर इक़बाल इस_दुनिया तुझ से नाखुश है,
सारे लोग ”दुनिया” में पसंददीदा नहीं होते।

Allama Iqbal Shayari in Urdu

हज़ारों साल नर्गिस अपनी बे-नूरी पे रोती है,
बड़ी मुश्किल से होता है चमन में दीदा-वर पैदा।

मेरे बचपन के दिन भी क्या ख़ूब थे इक़बाल,
बेनमाज़ी भी था और बेगुनाह भी।

तैरना है तो समंदर में तैरो नालों में क्या रखा हैं,
प्यार करना है तो देश से करो औरों में क्या रखा हैं।

न तू ज़मीं के लिए है न आसमाँ के लिए,
जहाँ है तेरे लिए तू नहीं जहाँ के लिए।

दुनिया की महफ़िलों से उकता गया हूं या रब,
क्या लुत्फ़ अंजुमन का जब दिल ही बुझ गया हो।

और भी कर देताहै दर्द में इज़ाफ़ा,
तेरे होते हुए गैरों का दिलासा देना।

महीने-वस्ल के घड़ियों की ‘सूरत’ उड़ते जाते हैं,
मगर घड़ियाँ जुदाई की गुज़रती हैं महीनों में।

Motivation Allama Iqbal Shayari in Hindi

ग़ुरबत में हों अगर हम, रहता है दिल वतन में,
समझो वहीं हमें भी, दिल हो जहाँ हमारा।

मिटा दे अपनी हस्ती को गर कुछ मर्तबा चाहिए,
कि दाना खाक में मिलकर, गुले-गुलजार होता है।

जानते हो तुम भी फिर भी अजनान बनते हो,
इस तरह हमें ”परेशान” करते हो,
पूछते हो ‘तुम्हे’ किया पसंद है,
जवाब खुद हो फिर भी सवाल करते हो।

सुबह को बाग़ में शबनम पड़ती है फ़क़त इसलिए,
के पत्ता पत्ता करे तेरा ज़िक्र बा वजू हो कर।

फ़िदा-ए-मुल्क होना हासिल-ए-क़िस्मत समझते हैं,
वतन पर जान देने ही को हम जन्नत समझते हैं,
मज़हब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना,
हिन्दी हैं हम वतन है हिन्दोस्ताँ हमारा।

फ़क़त निगाह से होता है फ़ैसला दिल का,
न हो निगाह में शोख़ी तो दिलबरी क्या है।

खुदी को कर बुलंद इतना कि हर तक़दीर से पहले,
ख़ुदा बंदे से ख़ुद पूछे बता तेरी रज़ा क्या है।

Zindagi Allama Iqbal Shayari in Hindi

उरूज-ए-आदम-ए-ख़ाकी से अंजुम सहमे जाते हैं,
कि ये टूटा हुआ तारा मह-ए-कामिल न बन जाए।

परबत वो सबसे ऊँचा, हमसाया आसमाँ का,
वो संतरी हमारा, वो पासबाँ हमारा।

जब इश्क़ सिखाता है आदाब-ए-ख़ुद-आगाही,
खुलते हैं ग़ुलामों पर असरार-ए-शहंशाही।

जब आँख खुले तो धरती हिन्दुस्तान की हो,
जब आँख बंद हो तो यादेँ हिन्दुस्तान की हो
हम मर भी जाए तो कोई गम नही,
लेकिन मरते वक्त मिट्टी हिन्दुस्तान की हो।

गोदी में खेलती हैं, जिसकी हज़ारों नदियाँ,
गुलशन है जिसके दम से, रश्क-ए-जिनाँ हमारा।

सितारों के आगे जहां और भी है,
अभी इश्क़ के इम्तिहां और भी है,
तू शाही है परवाज़ है काम तेरा,
तिरे सामने आसमां और भी है।

किसी को लगता हैं हिन्दू ख़तरे में हैं किसी को लगता मुसलमान ख़तरे में हैं,
धर्म का चश्मा उतार कर देखो यारों पता चलेगा हमारा हिंदुस्तान ख़तरे में हैं।

कुछ कर गुजरने की गर तमन्ना उठती हो दिल में,
भारत मा का नाम सजाओ दुनिया की महफिल में।

हंसी आती है मुझे हसरत-ए -इंसान पर,
गुनाह करता है खुद लानत भेजता है शैतान पर।

Allama Iqbal Shayari Hindi

हम जब निभाते है तो इस तरह ”निभाते” है,
सांस लेना तो छोड़ सकते है पर दमन यार नहीं।

तिरे इश्क़ की इंतिहा चाहता हूँ,
मिरी सादगी देख क्या चाहता हूँ,
ये जन्नत मुबारक रहे ज़ाहिदों को,
कि मैं आप का सामना चाहता हूँ।

ऐ आब-ए-रूद-ए-गंगा वो दिन है याद तुझको,
उतरा तेरे किनारे, जब कारवाँ हमारा।

साक़ी की मुहब्बत में दिल साफ़ हुआ इतना,
जब सर को झुकाता हूँ शीशा नज़र आता है।

न रख उम्मीद-ए -वफ़ा किसी परिंदे से “इक़बाल,
जब पर निकल आते हैं तो अपना ही आशियाना भूल जाते हैं।

मेरा जूता है जापानी पतलून है इंग्लिश तानी,
सर पर लाल टोपी रुसी फिर भी दिल है हिन्दुस्तानी।

ज़माने भर में मिलते हैं आशिक कई मगर वतन से खूबसूरत कोई सनम नहीं होता,
नोटों में भी लिपट कर सोने में सिमटकर मरे हैं,
कई मगर तिरंगे से खूबसूरत कोई कफ़न नहीं होता।

मज़हब नहीं सिखाता, आपस में बैर रखना,
हिन्दी हैं हम, वतन है हिन्दोस्ताँ हमारा।

ना सरकार मेरी है ना रौब मेरा है ना बड़ा सा नाम मेरा है,
मुझे तो एक छोटी सी बात का गर्व हैं मैं,
हिन्दुस्तान का हूँ और हिन्दुस्तान मेरा है।

यूनान-ओ-मिस्र-ओ- रोमा, सब मिट गए जहाँ से,
अब तक मगर है बाकी, नाम-ओ-निशाँ हमारा।

मंज़िल से आगे बढ़कर मंज़िल तलाश कर,
मिल जाये तुझको दरिया तो समुन्दर तलाश कर,
हर शीशा टूट जाता है पत्थर की चोट से,
पत्थर ही टूट जाये वो शीशा तलाश कर।

कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी,
सदियों रहा है दुश्मन दौर-ए-ज़माँ हमारा,
मज़हब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना,
हिन्दी हैं हम वतन है हिन्दोस्ताँ हमारा।

‘इक़बाल’ कोई महरम, अपना नहीं जहाँ में,
मालूम क्या किसी को, दर्द-ए-निहाँ हमारा।

मुमकिन” है कि तू जिसको_समझता है बहारां,
औरों की निगाहों में वो “मौसम” हो खिजां का।

आजाद की कभी शाम नहीं होने देंगें शहीदों की कुर्बानी बदनाम नहीं होने,
देंगें बची हो जो एक बूंद भी गरम लहू की तब तक,
भारत माता का आँचल नीलाम नहीं होने देंगें गणतंत्र दिवस मुबारक हो।

सारे जहाँ से अच्छा, हिन्दोस्ताँ हमारा,
हम बुलबुलें हैं इसकी, यह गुलिसताँ हमारा।

खुदा के ‘बन्दे’ तो हैं हजारों बनो में फिरते हैं मारे-मारे,
मैं उसका ”बन्दा” बनूंगा जिसको खुदा के बन्दों से प्यार होगा।

कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी,
सदियों रहा है दुश्मन दौर-ए-ज़माँ हमारा,
मज़हब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना,
हिन्दी हैं हम वतन है हिन्दोस्ताँ हमारा।

तिरे इश्क़ की इंतिहा चाहता हूँ,
मिरि सादगी देख क्या चाहता हूँ।

बे-ख़तर ”कूद” पड़ा आतिश-ए-नमरूद में इश्क़,
अक़्ल है महव-ए-तमाशा-ए-लब-ए-बाम अभी।

इक़रार ऐ मुहब्बत ऐहदे ऐ-वफ़ा सब झूठी सच्ची बातें हैं इक़बाल,
हर शख्स खुदी की “मस्ती” में बस अपने खातिर जीता है।

किसी गजरे की खुशबु को महकता छोड़ आया हूँ,
अपनी नन्ही सी चिड़िया को चहकता छोड़ आया हूँ,
मुझे छाती से अपनी तू लगा लेना,
ऐ भारत माँ मैं अपनी माँ की बाहों को तरसता छोड़ आया हूँ।

हम से पहले था ”अजब” तेरे जहाँ का मंज़र,
कहीं मसजूद थे पत्थर कहीं माबूद शजर,
खूगर ए पैकर ए महसूस थी इंसां की नज़र,
मानता फिर कोई अनदेखे ख़ुदा को क्योंकर,
तुझ को मालूम है लेता था कोई नाम तेरा,
कुव्वत ए बाज़ू ए मुस्लिम ने किया काम तेरा।

हर मुसलमाँ रग-ए-बातिल के लिए नश्तर था,
उस के ”आईना-ए-हस्ती” में अमल जौहर था,
जो भरोसा था उसे क़ुव्वत-ए-बाज़ू पर था,
है तुम्हें मौत का डर उस को ख़ुदा का डर था,
बाप का इल्म न बेटे को अगर अज़बर हो,
फिर पिसर ”क़ाबिल-ए-मीरास-ए-पिदर” क्यूँकर हो।

उम्मीद करते है की, आपको यह हमारा अल्लामा इक़बाल की शायरी आपको जरूर पसंद आया होगा। आप हमारा यह लेख अपने मित्रो के साथ साझा कर सकते है, और हमें कमेंट में बता सकते है आपको हमारा यह लेख कैसा लगा।

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